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Thirteen Hindi Poets

Thirteen Hindi Poets

! THIRTEEN HINDI POETS

! ! Yesterday, while typing up a poem by Manglesh Dabral for a student, it occurred to me to choose a few more favourites and add them to our website for others to read also. My hope is that this small selection will lead readers to explore modern Hindi poetry, which is so rich in variety and profound in implication. Many works by the poets included here are easy to find online, for example through the very useful (if typographically haphazard) site kavitakosh.org.

In selecting this baker’s dozen of poets and their works, I have been guided by a single criterion: that after reading a poem, the axis of one’s being should have shifted, at least for a moment, by a degree or two. Why thirteen poets? More than twelve, less than fourteen.

The very brief notes on the poets make no mention of the many awards and prizes awarded to each one of them (except Tulsidas), but these rituals are part and parcel of today’s literary world.

I have not provided glossaries, but could do so if this would be helpful. ! ! ! ______!______Feedback welcome: [email protected]

Rupert Snell 24th November 2014 THIRTEEN HINDI POETS

अeय ! ! ! ! ! रात गाव!

झगuरी की लोiरया! सलuा गयी थ गाव को,! झoपड़e iहडोलo-सी झuला रही ! धी-धी! उजली कपासी धम-डोiरया ।! ! ! कापती ! छद! पहाड़ नह कापता,! सभी ओर खuला ! न ड़, न तराई;! वन-सा, वन-सा अप बद ! कापती ढाल पर घर ! शद री समाई नह होगी! नी झील पर झरी! सना का छद ।! iद की लौ की! ! नही परछाइ ।! ! ! ! ! णाम! ! सहा भोर! उमसती सझ! नील पटल पर एक नाम! iहना की गध! ओस िखल आ सय! iकसी की याद! काश ! णाम ।! ! क-क ाण-वा! ! सहा ! ! जी !! ! Sacchidanand Hiranand Vatsyayan ‘’ (1911-87) is virtually the muse of post-Independence Hindi poetry. His many collections were represented in two volumes entitled सदानीरा in 1986; our frst two poems are from its second volume, while the third is from नदी की बाक पर छाया (1981), and the last two are from ऐसा कोई घर आप खा (1986). THIRTEEN HINDI POETS

अशोक वाजयी ! ! ! ! मuझe चाiहए! ! मuझe चाiहए परी पवी! अपनी वनपiतयo, समuo! और लोगo िघरी ई,! एक छोटा-सा घर काफ़ी नह ।! ! एक िखड़की रा काम नह चगा,! मuझe चाiहए परा का परा आकाश! अप असय नo और हo भरा आ ।! ! इस जरा-सी लालन नह िमगा! रा अधeरा! मuझe चाiहए! एक धधकता आ वलत सय ।! ! थोड़e- शदo नह बना सकता! कiवता,! मuझe चाiहए समची भाषा –! सारी हरीiतमा पवी की! सारी नीिलमा आकाश की! !सारी लािलमा सयoदय की ।! ! ! ! ! ! Poet and administrator (born 1941) has been at the hub of many governmental and independent cultural organizations for several decades. Tis poem is from तपuष (1989). THIRTEEN HINDI POETS

धमवीर भारती ! ! ! ! ढीठ चादनी! ! आज-कल तमाम रात! ! !चादनी जगाती मuह पर - छ! अधखu झरो ! अदर आ जाती ! ! !द पाव धो माथा छ! iनiदया उचटाती ! बाहर जाती ! घटo बiतयाती ! ठडी-ठडी छत पर! िलपट-िलपट जाती ! iवल मदमाती ! !! ! बावiरया iबना बात आज-कल तमाम रात! !चादनी जगाती ! ! ! ! ! ! !

Dharamvir Bharati (1926-1997) was a prolifc, well-loved, and highly-regarded writer and editor. He spent nearly forty years at the helm of the magazine धमयuग. Our poem is from सात गीत-वष 2nd edn, 1964. THIRTEEN HINDI POETS

गगन iगल ! ! ! ! ! जा ए! ! एक iदन eम आगा तuहा घर और घर अन न होगा । एक iदन eम आगा तuहा जीवन और भर चu हo सब प । एक iदन eम आगा तuहा पास और , ! !तu मालम न होगा eम यह । बदल गया होगा उसका मuख इस जम तक आ-आ । थक गया होगा उसका iसर । ! !भर चuकी होगी उस उ भर की नद । जा ए eम गा तu अजीब ख़ाली आखo । मयu करीब सपनीली हो !जागी उसकी आ । और गीली ।! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! Gagan Gill was born in Delhi in 1959, and worked as a journalist before turning to poetry and literature as a profession. Each of her collections of poetry has a unique theme, and is imbued with profound insight. Our poem is from यह आका समय नह (1998). THIRTEEN HINDI POETS

दारनाथ iसह ! ! ! सन् 47 को याद कर ए! ! तu नर िमया की याद दारनाथ iसह! ए नर िमया! iठगu नर िमया! रामगढ़ बाज़ार सuम चकर! सब अत लौट वा नर िमया! या तu कuछ भी याद दारनाथ iसह!

तu याद मदरसा! इमली का ड़! इमामबाड़ा! तu याद शu अख़ीर तक! उनीस का पहाड़ा! या तuम अपनी भली ई ट पर! जोड़-घटाकर! यह iनकाल सक हो! iक एक iदन अचानक तuहारी बती को छोड़कर! यo च ग नर िमया! या तu पता ! इस समय कहा ! ढाका! या मuलतान ! या तuम बता सक हो ! हर साल iकत पe iगर ! पाiकतान !

तuम चuप यo हो दारनाथ iसह! !या तuहारा गिणत कमज़ोर ! ! was born in 1934 in Ballia District, U.P., and was educated in nearby Banaras. Now retired, he served as a Professor of Hindi at Jawaharlal Nehru University for many years. His many volumes of highly accessible poetry include यहा खो (1983; 1989 edition), from which our poem is taken. THIRTEEN HINDI POETS

कuवर नारायण ! ! ! ! ! कiवता की ज़रत! ! बत कuछ सकती कiवता! यo iक बत कuछ हो सकती कiवता! ! iज़दगी ! !! अगर हम जगह उ! ज फलo को जगह ती ड़! ! !ज तारo को जगह ती रात हम बचा रख सक उस िलए! अप अदर कह! ! ऐसा एक कोना! जहा ज़मीन और आसमान! जहा आदमी और भगवान बीच री! ! ! ! कम कम हो । व कोई चा तो जी सकता ! ! एम iनतात कiवतारiहत िज़दगी! !! कर सकता ! ! कiवतारiहत eम ! ! ! ! ! ! ! ! Kunwar Narain was born in 1927 and counts the -Ayodhya-Faizabad triangle as his home – though he now lives in Delhi. Much of his poetry is represented in a volume of translations by his son Apurva: but not this one, which is from कोई सरा नह, 1993. THIRTEEN HINDI POETS

लीलाधर जगड़ी! ! ! ! ! ! !चuल की आमकथा ! ! ! न झील न ताल न तलया! न बादल न समu! यहा फसा इस गढ़या ! चuल भर आमा िल! - ! !सड़क बीचo बीच मuझ भी झलकता आसमान! चमक सय iसता चाद! iदख चील कौ तो और तीतर! ! !मuझe भी iहला ती हवा मuझ भी पड़कर! सड़ सकती ! ! !फल पo सiहत हiरयाली की आमा रोज कम होता! री गदली आमा का पानी! बदल रहा शरीर ! चuपचाप! भाप बनकर! !बाहर iनकल रहा ।! ! ! ! ! , who was born in 1944 in a village in Tehri Garhwal, , has established a wide following through the novelty of his poetic voice. Poem from Kavitakosh.org. THIRTEEN HINDI POETS

मगश डबराल! ! ! ! ! !टॉच ! बचपन iदनo ! एक बार iपता एक सuदर सी टॉच ला! िजस शी गोल ख ब ए ज आजकल कारo की डलाईट हो ! हमा इला रोशनी की वह पहली मशीन! िजसकी शहतीर एक चमकार की तरह रात को दो iहसo बाट ती थी ।!

एक सuबह री पड़ोस की दादी iपता कहा! टा इस मशीन चहा जला िलए थोड़ी सी आग दो! iपता हसकर कहा चाची इस आग नह होती iसफ उजाला होता ! यह रात हो पर जलती ! और इस पहाड़ उबड़-खाबड़ रा साफ iदखाई !

दादी कहा टा उजा थोड़ी आग भी रहती तो iकतना अछा था! मuझe रात को भी सuबह चहा जला की iफ़ रहती ! घर-iगरती वालo िलए रात उजा का या काम! बड़e-बड़e लोगo को ही होती अधe ख की जरत! iपता कuछ बो नह बस खामोश र र तक ।!

इत वष बाद भी वह घटना टॉच की तरह रोशनी! आग मगती दादी और iपता की ख़ामोशी चली आती ! !हमा वत की कiवता और उसकी iवडबनाआe तक । ! ! ! ! ! ! ! ! Manglesh Dabral was born in 1948 in a village in Tehri Garhwal, Uttarakhand; his work often recalls his childhood in the hills. Poem from kavitakosh.org. THIRTEEN HINDI POETS

रघuवीर सहाय ! ! ! ! ! पानी!

पानी का वप ही शीतल !

बाग नल फटती उजली iवपuल धार! कल-कल करता आ र-र तक जल! हरी सीझता ! िमी रसता ! , ! ! ताप हरता मन का ख iबनसता । ! ! ! ! पानी समरण!

कध । र घोर वन मसलाधार वि! पहरः घना तालः ऊपर झuकी आम की डाल! बयारः िखड़की पर खड़e, आ गयी फuहार! !रातः उजली ती पार, सहसा iदखी! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! Raghuveer Sahay (1929-1990), born in Lucknow, was a journalist and editor; but most importantly he was a poet, with a long list of poetry collections to his name. Our poems are from Kritya.in. THIRTEEN HINDI POETS

राजी ठ! ! ! ! ! !मuग़ल गाडन ! हम मान िलया! फल तuहा ! फल तuहा ! मखमली ब तuहारी ! ! !सतरी तuहा मान िलया! उस चौही बीच का आसमान! तuहारा ! सरहदo टकरा कर आती हवा! ! !तuहारी तuम भी जान लो! जड़e हमारी ! खाद हमारी ! तu चौही भर धप वाला! आकाश हमारा ! काश हमारा ! ढलावo बहता आता पानी हमारा ! बीजo को लाद लाती हवा हमारी ! !ष सारी धरा हमारी । ! ! ! ! ! ! ! Rajee Seth was born in 1935 in the Punjabi town of Naushehra, now in Pakistan. Her work includes both creative writing in many genres, and critical writing. Our poem is from Kavitakosh.org. THIRTEEN HINDI POETS

सiवता iसह! ! ! ! ! ! ! तारo का एक घर ! न जा iकत ता! री आखo आ-आ कर वत हो जा र ! उनकी ज़ रोशनी! गहन उमा उनकी! आकर री आखo बuझती रही ! और इन तारo का! एक iवशाल दीत घर बन गई ! ! !िजस मनuयo की भाiत मर आ आज भी हर रात! एक तारा उतरता मuझ! हर रात उतना ही काश मरता ! उतनी ही उमा चली जाती कह... ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! Savita Singh was born in 1962 in Bihar; she studied in Delhi and Montreal, and is now Professor and Director, School of Gender and Development, Indira Gandhi National Open University in Delhi. Tis poem is from her frst collection of poetry, अप जसा जीवन (2000). THIRTEEN HINDI POETS

तuलसीदास रामचiरतमानस (लकाकाड ) परब iदसा iबलोiक भu खा उiदत मयक । कहत सबiह ख सiसiह मगपiत सiरस असक ॥

परब iदiस iगiर गuहा iनवासी । परम ताप ज बल रासी ॥ म नाग तम कuभ iबदारी । सiस सiर गगन बन चारी ॥ iबथu नभ मuकuताहल तारा । iनiस सuदरी र iसगारा ॥ कह भu सiस म चकताई । कह काह iनज iनज मiत भाई ॥

कह सuीव सuन रघuराई । सiस म गट भिम क झाई ॥ मारeउ रा सiसiह कह कोई । उर मह परी यामता सोई ॥

कॊउ कह जब iबiध रiतमuख कीहा । सार भाग सiस कर हiर लीहा ॥ िछ सो गट इ उर माह । तeiह मग िखअ नभ पiरछाह ॥

भu कह गरल बधu सiस रा । अiत य iनज उर दीह बरा । iबष सजuत कर iनकर पसारी । जारत iबरहवत नर नारी ॥

कह हनuमत सuन भ सiस तuहार य दास । तव मरiत iबधu उर बसiत सॊइ यामता अभास ॥ १२ (क) ॥

Readers may be surprised to see Tulsidas, whose रामचiरतमानस bears the date 1574, in such modern company as our other poets; but the poets themselves won’t be, and neither would Tulsi. Here, Rama asks his comrades to explain the true nature of the dark patch on the moon. Te novel vowel signs seen in मारeउ, कॊउ, and तeiह indicate long syllables that have to be read as short for metre thus: mārĕu kŏu, tĕhi. THIRTEEN HINDI POETS iवनोद कuमार शu! ! ! ! ! !हताशा एक यित बठ गया था ! हताशा एक यित बठ गया था! यित को नह जानता था! हताशा को जानता था! इसिलए उस यित पास गया ! हाथ बढ़ाया! रा हाथ पकड़कर वह खड़ा आ! मuझe वह नह जानता था! हाथ बढ़ा को जानता था ! हम दोनo साथ च! दोनo एक स को नह जान ! साथ चल को जान ।! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! !

Novelist and poet was born on new year’s day, 1937. His frst poetry collection, लगभग जयiहद, appeared in 1971, his second, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर iवचार की तरह, a decade later. Our poem is from अiतiरत नह, 2000. THIRTEEN HINDI POETS

अeय ! ! ! ! ! नाच! ! एक तनी ई रसी िजस पर नाचता । िजस तनी ई रसी पर नाचता वह दो खभo बीच । रसी पर जो नाचता वह एक ख स ख तक का नाच । वल उस ख इस ख तक दौड़ता ! दो खभo बीच िजस तनी ई रसी पर नाचता iक इस या उस ख रसी खोल उस पर तीखी रोशनी पड़ती iक तनाव चu और ढील मuझe छuी हो जा − िजस लोग रा नाच ख । पर तनाव ढीलता नह

न मuझe ख जो नाचता और इस ख उस ख तक दौड़ता न रसी को िजस पर नाचता पत तनाव वसा ही बना रहता न खभo को िजस पर रसी तनी सब कuछ वसा ही बना रहता । न रोशनी को ही िजस नाच दीखता : और वही रा नाच िज सब ख लोग iसफ़ नाच ख । मuझe नह पर जो नाचता रसी को नह जो िजस रसी पर नाचता ख नह जो िजन खभo बीच रोशनी नह िजस पर जो रोशनी पड़ती तनाव भी नह उस रोशनी उन खभo बीच उस रसी पर ख − नाच ! असल नाचता नह ।

! ! ! ! ! ! If you are wondering why this small collection of poetry includes not just one but two by Agyeya, count again: actually it includes fve. Tis rightly famous poem, written in 1976, is from the second volume of सदानीरा (1986).