Yearly Academic Journal
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YEARLY ACADEMIC JOURNAL ISSN: 2348-9014 ISSN: 2348-9014 (UNIVERSITY OF DELHI) East Patel Nagar, New Delhi – 110008 Editor : Dr. Punita Verma Co-editor: Dr. Chaity Das Editorial Board: Dr. Neetu Agrawal (Garg) Ms. Shipra Gupta Ms. Anshula Dr. Raksha Geeta (For Hindi) Dr. Vishwajeet Vidyalankar (For Sanskrit) Principal’s Message With immense pleasure we bring to you the sixteenth volume of the Academic Journal with an array of articles on multidisciplinary research areas. It has been a long journey with several colleagues over the years nurturing the journal. I take this opportunity in the year of the golden jubilee of the college to thank all of them for their contribution. As you will be aware the journal crossed a major milestone last year by opening itself up to peer review. This year we have lived up to our own expectations as will be demonstrated by the diversity of topics covered ranging from a study of women empowerment to Italian neo-realism and so on. The articles are a product of both primary and secondary research and we fervently hope that it shall be enjoyed and appreciated by the readers. I congratulate the Convenor Dr. Punita Verma, Co-Convenor Dr. Chaity Das, and members of the committee Dr. Neetu Agrawal, Ms Shipra Gupta, Ms Raksha, Ms Anshula, Dr. Vishwajit Vidyalankar and am sure that in the coming years the journal shall grow in leaps and bounds. Editorial The sixteenth volume of the Yearly Academic Journal is at hand and we are delighted to present it to your discerning eyes. The articles display a host of academic areas ranging from history, memory, culture, globalisation, peace and women’s empowerment to the physics of optical fibres and Surface Plasmons. As in the past we have tried to ensure variety in place of an overarching theme. While there is little interconnectedness between the articles, they all stand alone in their respective claims to scholarship and knowledge production. We begin with a very relevant article in Anita Verma’s study of the marketing of eco- friendly products. She brings out the positive impact and response of young consumers towards environment friendly initiatives. Indu Chowdhury’s article explores the different patterns of migration across states and demonstrates how social and economic infrastructure is linked to migration. Shipra Gupta explores the rousing cinematic oeuvre of Vittorio De Sica, especially his classics “The Bicycle Thief” and “Umberto D.” The social realism of the filmmaker is foregrounded as she analyses the cinematic language of the realists. Richa Mani presents a sharp study of the geopolitics of Russia and the countries of Transcaucasia. While the political leadership of these countries have made a choice between the West and Russia in their cultural, economic and political affiliations, she suggests that a common ground be found between the countries and Russia for the sake of development and international security. Stirred into this mix is the walk down memory lanes in Aditi Chowdhury’s article about the Chishtiyya Jammatkhanas exploring the poetic and peaceable Sufi tradition of Islam as opposed to the popular stereotypes of a marauding religion that relied on the sword and forced conversion. Ms. Mamta’s article takes us to the mellifluous lanes of folk songs in Hindi cinema talking about a twin movement through the inclusion of the folk in film narratives. While they hybridise the lyrics of film, these songs also add a touch of authenticity by lending their rusticity. Ezra John brings in a nuanced reading of Gandhi and his dismissal of the cinematic medium by arguing that cinema was furthering the same causes and hence his mistrust was a trifle misplaced. Pushpa Bindal, Triranjita Srivastava and other authors have carried out experimental investigations on all types of splice losses, namely; longitudinal offset, transverse offset, angular offset. They have also carried out simulations of propagation characteristics of rectangular core plasmonic waveguides using a well established and popular effective index method. The reflectance curves for a surface plasmon resonance sensor are obtained using the concept of frustrated total internal in light waves through thin layers of aluminium and graphene deposited under the base of silica prism. Anula Maurya and Anuradha Maurya’s co-authored article argues that the task of women’s empowerment is incomplete without the inclusion of women in decision making and gender-sensitive policies. In a subsequent article on global peace Dr. Maurya refers to the cause of environmental integrity, economic efficiency and social equity as harbingers of global peace. Further in her article on globalisation she argues that the advantages of this process can only be universal if there are increased opportunities for women. Thus women’s position in society becomes the touchstone of progress. With this issue our journey towards academic excellence has picked up pace. At the same time, we have fostered a spirit of enquiry which is slowly attaining not only new heights but finding new levels and paradigms. Punita Verma and Chaity Das स륍पादकीय शोध संस्कृ ति की ऊंची उड़ान व्यापक अर्थ मᴂ शोध ककसी भी क्षेत्र मᴂ ज्ञान की खोज करना या विधधिि गिेषणा करना होिा है|शोध हमारी जजज्ञासाओं का समाधान करिा है|इसमᴂ हम पुराने सस饍ांिो,संक쥍पनाओं का पुनः परीक्षण करिे हℂ िाकक निीन िस्िुओं सस饍ांिⴂ और संक쥍पनाओंको स्र्ावपि कर सकᴂ | िैश्िीकरण के ििथमान दौर मᴂ उ楍च सशक्षा की सहज उपल녍धिा और उ楍च सशक्षा संस्र्ानⴂ को शोध से अतनिायथ 셂प से जोड़ने की नीति ने शोध की महत्िा को बढ़ािा ददया है| आज शैक्षक्षक शोध का क्षेत्र विस्ििृ और सघन हुआ है| शोध हमारे बोध को विस्ििृ करिा है सशक्षा के क्षेत्र मᴂ कु छ जोड़िा है| यानी ज्ञान मᴂ कु छ नयापक्ष जोड़िा है शोधार्ी अपने ज्ञान के कु छ नये आयाम उ饍घादिि करिा है| शोधपुनः खोज नह Ă है अपपतु गहन खोज है| दहंदी मᴂ शोध केस्िरि उसकी समस्याओं ि समाधान को लेकर अ啍सर उसकी गुणित्िा पर प्रश्नधचह्न लगाये जािे हℂ विशेषकर विश्िवि饍यालयी शोध की जस्र्ति अति धचंिनीय है| इस संदभथ मᴂ कासलंदी महवि饍यालय अपिाद है| कासलंदी महावि饍यालय शोध पर륍परा ि संस्कृ ति को बढ़ािा देने के सलए सदैि बहुआयामी प्रयास करिा रहा है| अकादसमक जनथल के सोहलिᴂ संस्करण मᴂ भी शोध स्िर ि प्रकिया के स्िर पर तनयंत्रण रखने के सलए विषय- विशेषज्ञका पैनल िैयार ककया गया, जजसमᴂ शोध कायथ की मौसलकिा, उसका समाजोपयोगी होना िर्ा प्रासंधगकिा को विशेष 셂प से ध्यान मᴂ रखा गया| सत्र 2015-16 महावि饍यालयके सलए शोध कायⴂके सन्दभथ मᴂ विशेष 셂प से उ쥍लेखनीय रहा| हमारी आदरणीय प्राचायाथ महोदय की प्रेरणा ि नेित्ृ ि मᴂ विविध विभागⴂ मᴂ राष्ट्रीय ि अन्िरराष्ट्रीय संगोजष्ट्ियⴂ का आयोजन ककया गया ,गंभीरशोधलेखन का िािािरण तनसमथि हुआ| पूरे िषथ महावि饍यालय मᴂ शोध का िािािरण बना रहा जजसने न केिल सशक्षकⴂको उनकी जजज्ञासु, धचन्िक ि सजृ नशीलिाके प्रति जागिृ ि प्रेररि ककया अवपिु छात्रⴂ मᴂ भी शोध केप्रति जजज्ञासु बनाया| दहंदी विभाग 饍िारा“सोशल मीडिया मᴂ सादहत्य का बदलिा स्ि셁प”जैसे चनु ौिीपूण थ विषय परआयोजजि अन्िरराष्ट्रीय संगोष्ट्िी मᴂ दहंदीिर विभागⴂ से शोध पत्रⴂ का आना सुखद रहा| हमारी प्राचायाथ िॉ अनुला मौयथ जी का शोध पत्र “सोशल मीडिया और लघु पत्रत्रकाएँ” मौसलकिा के इसी प्रतिमान की स्र्ापना कर रहा है| इसमᴂ दहंदी की उन महत्त्िपूण थ ई –पत्रत्रकाओं को रखांककि ककया गया है जजनका दहंदी भाषा सादहत्य और संस्कृ ति के विकास मᴂ महत्त्िपूण थ योगदान है| इन लघु ई-पत्रत्रकाओं की जानकारी होना पािकⴂ के ज्ञान विस्िार के सलए अत्यंि महत्त्िपूण थ है, शोध पत्र सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू से भी अिगि करिािा है िर्ा हमᴂ युगानु셂प डिजजिल सादहत्य से जोड़ने का सार्थक प्रयास करिा है| ििथमान डिजजिल युग मᴂ संगीि की अतनिायथिा और संगीि के माध्यम से जीिन से जुड़ े रहने की नई 饃जष्ट्ि हमᴂ सुश्री बलजीि के शोधालेख से प्राप्ि होिी है| उन्हⴂने कई उदाहरणⴂ के माध्यम से सस饍 ककया कक संगीि हमारे जीिन मᴂ निीन स्फू ति थ से भर देिा है संगीि के महत्त्ि को पुनः स्र्ावपि करने का सफल प्रयास ककया है| िॉऋिू का शोधलेख हजारⴂ िषथ पुरानी भारिीय सामाजजक संरचना मᴂ आए विविध बदलािⴂ को समकालीन नािको के संदभो मᴂ देखने का प्रयास करिा है, यह शोधालेख भारिीय समाज की जदिलिाओं के मध्य जातिगि िचथस्ि की संरचनाओं को अनाििृ करने की उ쥍लेखनीय भूसमका तनभािा है| मध्यकालीन सादहत्य मᴂ शोध की संभािनाएं आज भी बनी हुई है, िो यहाँ चनु ौतिया भी कम नहीं है| िॉ विभा िाकु र ने मीरा के व्यज啍ित्ि का आयाम हमारे सामने रखा है| भ啍ि कवित्रयी मीरा के “स्त्री मन” को उन्हⴂने बखूबी पढ़ा| विभा जी ने मीरा के संदभथ मᴂ कई पूिाथग्रहⴂ ि ्समर्कⴂ को िोड़ा ि नये िथ्य की स्र्ापना की| “मगृ या मᴂ आददिासी विमशथ” कोई कफ쥍म समीक्षा नहीं अवपिु कफ쥍म के माध्यम से आददिासी विमशⴂ को एक नया मागथ, नई 饃जष्ट्ि प्रदान करिा है, एक नया अध्याय जोड़िा है| यह शोधालेख 1976 मᴂ आई मगृ या जैसी रचनात्मक कफ쥍म कोसादहजत्यक आयामⴂ से जोड़ने की बाि करिा है| हम हमारी प्राचायाथ महोदया ि अपने सहयोधगयⴂ का आभार व्य啍ि करिे हℂ और आशा करिे है की शोध संस्कृ ति की यह मशाल इसी िरह प्र煍जिसलि होिी रहेगी और हमारी जजज्ञासाओं को शमन करने के सलए प्रेररि करिी रहेगी| इदमन्धन्तमः कृ त्स्नĂ जायेत भुवनत्रयम|् यदद श녍दाह्वयĂ 煍योततः आ सĂसारĂ न द प्यते|| काव्यादशश, १.२ संस्कृ ि काव्यशास्त्र के आ饍याचायⴂ मᴂ पररगणणि दण्िी ने अपने ग्रन्र् के प्रार륍भ मᴂ ही भाषा की महत्िा को 饍योतिि ककया है| उनका मि है कक यदद संसार मᴂ श녍दⴂ की 煍योति नहीं होिी िो तनणखल जगि ् अन्धकार मᴂ तनम嵍न हो जािा| ‘अर्प्रश वत्ृ त्सत तत्सत्सवानाĂ श녍दा एव तनबन्धनम’् अर्ाथि ्श녍द ही भाषा के व्यिहार का साधन होिे हℂ| उसी प्रिम मᴂ संस्कृ ि विभाग के आचायⴂ ने अपने विचारⴂ को श녍द셂प मᴂ वपरोने का यर्ास륍भि प्रयास ककया है| महावि饍यालय की प्राचायाथ िॉ.