॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स .. Shri Lalitasahasranama stotram ..

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August 20, 2017 .. Shri Lalitasahasranama stotram ..

॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

Sanskrit Document Information

Text title : lalitaasahasranaama

File name : lalita.itx

Category : , devii, dashamahAvidyA, lalita, stotra

Location : doc_devii

Language : Sanskrit

Subject : hinduism/religion

Transliterated by : M. Giridhar giridharmadras at gmail.com

Proofread by : Kirk Wortman kirkwort at hotmail.com, Sunder Hattangadi, Manda Krishna

Srikanth 1) Book ” Pushpam”; published by Math, Khar, Mumbai 2) Book

”Sri Lalita Sahasranama”; published by Sri Ramakrishna Math Mylapore, Madras; with text, transliteration and translation edited by Swami Tapasyananda 3) Videotape – of

Vedic Pandits, recorded from the Maharishi Channel

Latest update : August 2, 2002, December 24, 2013

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August 20, 2017

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॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स Includes comments on background and importance in the end written by M. Giridhar

॥ न्या ॥ अस श्रीललितासहस्रनामस्त मन् । वशिन्यादिवा्देग ऋषयः । अनषु ट् छन्ु । श्रीललितापमेशर दवताे । श्रीमद्वा ग्भव बीजम ।् मध्य कूटे शक्त । शक्ति कूटे कीलकम ।् श्रीललितामहातरि् ुरसप -प्रसादसिद्धि चिन्तितफलावाप जपे विनियोगः । ॥ ध्या ॥न सिन्दूर विग्रह त्रिनयन माणिक्यमौ स्फु र तारा नायक शखराे ं स्मिमुत मापीन वक्षोरु ।ह पाणिभ्यामलपि ू रत चषकं रक्तोत बिभ्र सौम्य रत घटस रक्तचरण ध्यया परामम्बिके ॥ा The Divine mother is to be meditated upon as shining in a vermilion-red body, with a triple eyes, sporting a crown of rubies studded with the crescent moon, a face all smiles, a splendid bust, one hand holding a jewel-cup brimming with mead, and the other twirling a red lotus.

अरुणा करुण तरङ्गिता धतृ पाशाङ्क पषु बाणचापाम ।् अणिमादिभि रावताृ ं मयखू -ै lalita.pdf 1 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

रहमितय् विभावये भवानीम ॥् I meditate on the great Empress. She is red in color, and her eyes are full of compassion, and holds the noose, the goad, the bow and the flower arrow in Her hands. She is surrounded on all sides by powers such as aNimA for rays and She is the Self within me.

ध्यया पद्मासने स विकसितवदनां पद्मपत्राय हमाभाे ं पीतवस्त करकलितलसदधेमप् द वराङ्ग ।ी सर्ालङ्व यक्ु त सतत मभयदां भक्तनम भवानी श्रीविद शान मर्ू त सकल सरनु ताु ं सर् सम्पत्प् ॥र The Divine Goddess is to be meditated upon as seated on the lotus with petal eyes. She is golden hued, and has lotus flower in Her hand. She dispels fear of the devotees who bow before Her. She is the embodiment of peace, knowledge (vidyA), is praised by gods and grants every kind of wealth wished for.

सकुङ्क विलेपनामलिकचम्ु कसतूरि् क समन हसितक्षे ण सशर चाप पाशाङ्कुश ।ा अशषजने मोहिनी अरु माल भषाम्बू र जपाकुसमु भासराु ं जपविधौ स्म दम्बिक ॥ा I meditate on the Mother, whose eyes are smiling, who holds the arrow, bow, noose and the goad in Her hand. She is glittering with red garlands and ornaments. She is painted with kumkuma on her forehead and is red and tender like the japa flower

2 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

॥ अथ श्रीललितासहस्रनाम ॥स ॐ श्रीमा श्रीमहारा श्री-मसिहासनं श्वे । चिदग्-कुण्-समभू् दवकारे -् समद्यु ॥ १॥ उद्यद-् सहस्रा चतर्ु ाब -समन्वि । रागस्व-पाशाढ् क्रोधाकाराङ्कुश ॥ २॥ मनोरूेप -क कोदण्ड पञ्चतन-सायका । निजारु-प्रभपा -मज्जद्ब-मण्डल ॥ ३॥ चम्पकाश-पन्नु -सौगन्ध-लसत्क । कुरुविन्द-शरे् -कनत्कोट-मण्डित ॥ ४॥ अष्टमी-विभ्र-दलिकस्-शोभिता । मखचनु -कलङ्क-मृगनाभि-विशषकाे ॥ ५॥ वदनस्-माङ्-गहतोरणृ -चिल्लि । वक्त्-परीवाह-चलन्मीन-लोचना ॥ ६॥ नवचम्-पष्पु -नासादण्-विराजिता । ताराकान्-तिरस्का-नासाभरण-भासराु ॥ ७॥ कदम्बमञ-कॢ-करण् ूप -मनोहरा । ताटङ-यगलीु -भतू -तपनोडुप-मण्डल ॥ ८॥ पद्मर-शिलादर-् परिभावि-कपोलभःू । नवविद्र-बिम्ब-न्यक्-रदनच्छ ॥ ९॥ or दशनच्छ शदु -विद्याङ्कुर-द्विजप-द्वयोज । करू्प -वीटिकामोद-समाकर्-ष दिगन्त ॥ १०॥ निज-सल्ल-माधरु -् विनिरभर् त् -कच्छ । or निज-सलापं मन्दस-प्रभपा -मज्जतक् -मानसा ॥ ११॥ अनाकलित-सादृश-चिबकश्ु -विराजिता । or चबु कश्ु कामशे -बद-माङ्-सतू -शोभित-कन्ध ॥ १२॥ कनकाङ्-केयरू -कमनीय-भजान्विु । lalita.pdf 3 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

रत्गन र् -चिन्त-लोल-मक्ु -फलान्वि ॥ १३॥ कामश्े -परेम् -मणि-प्रति-स्त । नाभ्यालव-रोमालि-लता-फल-कुचद्व ॥ १४॥ लक्ष्-लताधारता-समनु न् -मध्य । स्तनभ-दलन्-पट्ट-वलित्र ॥ १५॥ अरुणार-कौसमु -वस-भास्-वकटीतटी । रत-किङ्किणि-रम-रशना-दाम-भषिताू ॥ १६॥ कामशे -ज्ञ-सौभाग्-मारदवो् -द्वयान् । माणिक-मकु ुटाकार-जानद्ु -विराजिता ॥ १७॥ इन्द्-परिक्ष-स्मतूणर -जङ्घि । गढगू ल्ु कू रम् ृप -जयिष-् प्रपदान् ॥ १८॥ नख-दीधिति-सछनं -नमज्-तमोगणाु । पदद्-प्रभाज-पराकृ त-सरोरुह ॥ १९॥ सिञ्ज-मणिमञ्ज-मण्डि-श्-पदामबु् । or शिञ्ज मराली-मन्दगम महालावण्-शवधिःे ॥ २०॥ सर्ारुणाऽनवद्व सर्ाभरव -भषिताू । शिव-कामश्वराङे शिवा स्वाध-वल्ल ॥ २१॥ समु रे -मध-शृङ् श्रीमन-नायिका । चिन्ताम-गहान्तृ पञ-ब्रह्-स्थि ॥ २२॥ महापद्माट-सस्ं कदम्ब-वासिनी । सधासागरु -मध्य कामाक् कामदायिनी ॥ २३॥ दवर्े -ष गण-सघातं -सतूयमान् -वभवाै । भण्डाुस -वधोदय् -शक्तसेि -समन्वि ॥ २४॥ सम्पत-समारू-सिनध् -व्-सविताे । अश्वारूढाधिष्-कोटि-कोटिभिरावताृ ॥ २५॥ चक्रर-रथारू-सर्ाव ुय -परिष्कृ । गयचके -रथारू-मन्त्-परिसविताे ॥ २६॥

4 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

किरिचक-रथारू-दण्डनाथ-परस्कृु । ज्वा-मालिनिकाक्ष-वह्निप्र-मध्य ॥ २७॥ भण्डैस -वधोदय् -शक्-विक्-हर्ितष । नित्-पराक्रमाट-निरीक्-समतु सु् ॥ २८॥ भण्डुप -वधोदय् -बाला-विक्-नन्दि । मन्त्रि-विरचित-विषङ-वध-तोषिता ॥ २९॥ विशकु -प्राणह-वाराही-वीर-् नन्दि । कामश्े -मखालोकु -कल्प-श्रीणेशग ॥ ३०॥ महागणशे -निर्िभ -विघ्न-प्रह्षर । भण्डाुस ेर -निरुम् -शस-प्र-वर्िणष ॥ ३१॥

कराङगु् -नखोत्-नारायण-दशाकृ तिः । महा-पाशपतास्त्ु -निरदग्ध् सा -सनिकाै ॥ ३२॥ कामश्वरे -निरदग् -सभण्डाुस -शन्यू । ब्रहम् -महन्द्े -दवे -ससं त् -वभवाै ॥ ३३॥ हर-नत्राे -सदग्ं -काम-सञ्जीवनौषध । श्रीमद्-कू टैक-स्व-मखु -पङ्क ॥ ३४॥ कण्ठाध-कटि-परय् -मध्य क-स्वरूप । शक्-कू टैकतापन-कट्यधोभ-धारिणी ॥ ३५॥ मलू -मन्त्रा मलकू ू टत्-कलेबरा । कुलामृतकै -रसिका कुलसकं ेत-पालिनी ॥ ३६॥ कुलाङ्ग कुलान्त कौलिनी कुलयोगिनी । अकुला समयान्त समयाचार-तत्प ॥ ३७॥ मलाधारू कै -निलया ब्रह्-विभदिनीे । मणि-परान्तरुदू विषणुग् -विभदिनीे ॥ ३८॥ आज्-चक्रान्तर रुद्र-विभदिनीे । सहस्रारम्बुजा सधाु -साराभिवर्िणष ॥ ३९॥ lalita.pdf 5 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

तडिल्ल-समरुचि षट्चक्र-सस्थिं । महासक्त कुण्डलिन बिसतन-् तनीयसी ॥ ४०॥ भवानी भावनागम् भवारण्-कुठारिका । भद्रप् भद्मूर ्र तभक-सौभाग्यदायिन ॥ ४१॥ भक्तिप् भक्तिग भक्तिवश भयापहा । शाम्भ शारदाराध् शर्ाणव शरमदायिन् ॥ ४२॥ शाङ्क श्रीक साध् शरच्-निभानना । शातोदरी शान्तिम निराधारा निरञ्ज ॥ ४३॥ निर्ले निरमल् नित् निराकारा निराकुला । निरुणग् निष्क शान् निष्का निरुपप् ॥ ४४॥ नित्मुय निर्िकारव निष्प् निराश्र । नित्शुय नित्बुय निरवद् निरन्त ॥ ४५॥ निष्कार निष्कल निरुपाधि रनिरीश्व । नीरागा रागमथनी निरमद् मदनाशिनी ॥ ४६॥ निश्चि निरहंकारा निर्मो मोहनाशिनी । निरमम् ममताहन् निष्पा पापनाशिनी ॥ ४७॥ निष्क् क्रोधशम निर्लो लोभनाशिनी । निःसशयां सशयघ्ं निरभव् भवनाशिनी ॥ ४८॥ or निससंश् निर्िकलव निराबाधा निरभे् भदनाशिनीे । निर्ाशन मृतयुमथ् निष्क् निष्परिग ॥ ४९॥ निसतु् नीलचिकुरा निरपाया निरत्य । दु्लर दु्गर दुर् दुःखहन सखप्रु ॥ ५०॥ दुष्ट दुराचा-शमनी दोषवर्ितज । सरवज् सान्द्र समानाधिक-वर्ितज ॥ ५१॥ सरवशक्ति् सर-् मङ्ग सद्गतिप । सरवेश् सरवमय् सरवम् -स्वरूप ॥ ५२॥ सर-् यन्त्रा सर-् तन्त् मनोन्म ।

6 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

माहश्वे महादवीे महालक्ष ्मृडप्रि ॥ ५३॥ महारूप महापज्ू महापातक-नाशिनी । महामाया महासत् महाशक्त िमहारतिः ॥ ५४॥ महाभोगा महश्वै र महावीर्य महाबला । महाबद्धु िमहासिद्ध िमहायोगश्े रेशव ॥ ५५॥ महातन् महामन् महायन् महासना । महायाग-क्रमारा महाभरवै -पजिताू ॥ ५६॥ महश्े -महाकल-महाताण्ड-साक्षि । महाकामशे -महिषी महात्रपि -सन्दु ॥ ५७॥ चतःषषु ट्युपचा् चतःषष्टिकलामु । महाचतःु -षष्टिको-योगिनी-गणसविताे ॥ ५८॥ मनविद्ु चन्द्र चन्द्र-मध्य । चारुरू चारुहास चारुच-कलाधरा ॥ ५९॥ चराचर-जगन्ना चक्रर-निकेतना । पारवत् पद्मनय पद्मर-समप्र ॥ ६०॥ पञ-परेतासनासी् पञ्च-स्वरूप । चिन्म परमानन् विज्ञ-घनरूपिण ॥ ६१॥ ध्य-ध्या-धयेयर् धर्ाधम -र विवर्ितज । विश्वर जागरिणी स्वप तजसात्मिै ॥ ६२॥ सप्ु प्राज्ञा तर्ु य सर्ावसव -विवर्ितज । सृष्टिक ब्रह् गोप् गोविन्दरूप ॥ ६३॥ सहारिणीं रुद्र तिरोधान-करीश्व । सदाशिवाऽनग्रहु पञ्च क-परायणा ॥ ६४॥ भानमण्डु -मध्य भरवीै भगमालिनी । पद्मास भगवती पद्मन-सहोदरी ॥ ६५॥ उनम् -निमिषोत्-विपन-भवनावलीु । सहस-शीरषवदन् सहस्रा सहस्रप ॥ा ६६॥ lalita.pdf 7 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

आब्-कीट-जननी वर्ाशण -विधायिनी । निजाज्ञा-निगमा पण्याु ुणप -फलप्र ॥ ६७॥ शरु् -सीमन-सिन्द-कृ त-पादाब-धलिकाू । सकलागम-सन्द-शक्ु -समप् -मौक्ति ॥ ६८॥ परुषाु ्थपर पर्ू ण भोगिनी भवनु श्वे । अम्बिकाऽना-निधना हरिब्हर -सविताे ॥ ६९॥ नारायणी नादरूप नामरू-विवर्ितज । ह्रींक ह्रीम हृद हयोपादे ये -वर्ितज ॥ ७०॥ राजराजार्ितच राज् रम् राजीवलोचना । रञ्ज रमणी रस् रणत्किङ्-मखलाे ॥ ७१॥ रमा राकेन्दुव रतिरूप रतिप्रि । रक्षाक राक्षस रामा रमणलम्प ॥ ७२॥ काम् कामकलारूप कदम-कुसमु -प्रि । कल्या जगतीकन् करुण-रस-सागरा ॥ ७३॥ कलावती कलालापा कान् कादम्बरीप् । वरदा वामनयना वारुण-मद-विह्व ॥ ७४॥ विश्वाधि वदवे द्े विन्ध्-निवासिनी । विधात् वदजननीे विषणुमा् विलासिनी ॥ ७५॥ कषेत्र् कष् त्े कष् -कषे् -पालिनी । क्षवृय -विनिरुकम् कषेत्् -समर्ितच ॥ ७६॥ विजया विमला वन् वन्द-जन-वत्स । वाग्वादिन वामकेशी वह्निमण-वासिनी ॥ ७७॥ भक्ति-मकल्पलति पशपाशु -विमोचिनी । सहृतां ेश -पाषण्ड सदाचार-प्रव्तर ॥ ७८॥ or पाखण्ड तापत्रया-सन्-समाह्ला-चन्द् । तरुण तापसाराध् तनमध्ु तमोऽपहा ॥ ७९॥

8 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

चितिस्त-लक्ष्य चिदकरसे -रूपिण । स्वात्-लवीभतू -ब्रह्मा-सन्तत ॥ ८०॥ परा प्रत्यक्च पश्यन परदवताे । मध्य वखरीरूपै भक-मानस-हंसिका ॥ ८१॥ कामश्े -प्राणना कृ तज् कामपजिताू । शृङ्-रस-समपू् र जया जालन्-स्थि ॥ ८२॥ ओड्याणप-निलया बिन-मण्डलवासिन । रहोयाग-क्रमारा रहस्रत -तर्ितप ॥ ८३॥ सद्यःप्रसा विश-साक्षि साक्षिव्जर । षडङ्देवग -यक्ु षाडगु् -परिपरिताू ॥ ८४॥ नित्यक् निरुपम निर्ाव -सखु -दायिनी । नित्-षोडशिका-रूप श्रीकण्-ठ शरीरिणी ॥ ८५॥ प्रभाव प्रभार प्रसि परमश्वे । मलप्ू र कृत िअव्य व्यक्-स्वरूप ॥ ८६॥ व्यापि विविधाकारा विद्यावि-स्वरूप । महाकामशे -नयन-कुमदाह्लु -कौमदीु ॥ ८७॥ भक-हार-् तमोभदे -भानमद्भु -ा सन्तत । शिवदूत शिवाराध् शिवमर्ू ित शिवङ्क ॥ ८८॥ शिवप्रि शिवपरा शिषटे् शिष्पूजिट । अप्मेर स्वप्र मनोवाचामगोचरा ॥ ८९॥ चिच्छक च् तनारूपे जडशक्त िजडात्मि । गायत् व्याहृ सन् द्विबज -निषविताे ॥ ९०॥ तत्त्व तत्त् पञ-कोशान्-स्थि । निःसीम-महिमा नित-यौवना मदशालिनी ॥ ९१॥ or निस्स मदघर्ू िण -रक्ता मदपाटल-गण्डूभ । चन्-द्-दिग्धाङ चामप् -कुसमु -प्रि ॥ ९२॥ कुशला कोमलाकारा कुरुकुल कुलेश्व । lalita.pdf 9 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

कुलकुण्डालय कौल-मार-् तत्-सविताे ॥ ९३॥ कुमार-गणनाथाम् तष्टु पष्टु िमतिर ्धतिःृ । शान्त स्वस्त कान्त िनन्दि विघ्ननाशि ॥ ९४॥ तजोवतीे त्रिनय लोलाक्-कामरूपिण । मालिनी हंसिनी माता मलयाचल-वासिनी ॥ ९५॥ समु खीु नलिनी सभु र् शोभना सरनायिकाु । कालकण्ठ कान्तिम क्षोभि सक्ष्मरू ॥ ९६॥ वजरेश् वामदवीे वयोऽवस्-विवर्ितज । सिदधेश् सिद्धवि सिद्धमा यशस्वि ॥ ९७॥ विशद्धिु -निलयाऽऽरक्तवर त्रिलोच । खट्वाङ्-प्रहर वदनकै -समन्वि ॥ ९८॥ पायसान्नप् त्व पशलोकु -भयङ्क । अमृतादि-महाशक्-सवं ताृ डाकिनीश्व ॥ ९९॥ अनाहताब-निलया श्यामाभ वदनद्व । दष्ट्रोजं -मालादि-धरा रुधिरंस्थस ॥ १००॥ कालरात्र्-शक्त-वताृ स्निग्धौदनप । महावीरने -वरदा राकिण्यम-स्वरूप ॥ १०१॥ मणिपराबू -निलया वदनत्-सयं ताु । वज्रादिकयुधा पेो डामर्ादिभिराय ृतव ॥ १०२॥ रक्तवर मासनिष्ं गडानु -प्र-मानसा । समस्त-सखदाु लाकिन्य-स्वरूप ॥ १०३॥ स्वाधिष्ठना -गता चतरु व् -मनोहरा । शलाद्यू या -सम्प पीतवर्ाऽतिगरण वि् ॥ १०४॥ मदोनिष्े मधप्रीु बन्धिन्-समन्वि । दध्यन्-हृदय काकिनी-रू-धारिणी ॥ १०५॥ मलाधारामू बुजार् पञ-वक्त्र-सस्थिं । अङ्कुशा-प्रहर वरदादि-निषविताे ॥ १०६॥

10 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

मद्गौदनाु -चित् साकिन्य-स्वरूप । आज्-चक्र-निलया शक्लवु र षडानना ॥ १०७॥ मज्जसंा हंसवती-मखु -शक्-समन्वि । हरिद्रना -रसिका हाकिनी-रू-धारिणी ॥ १०८॥ सहस्र-पद्म सर-् वर्ण-शोभिता । सर्ाव ुधधरय शकु -सस्थिं सरवतो् ुखम ॥ १०९॥ सर्वौ-प्रीतचि याकिन्य-स्वरूप । स्वा स्वधाऽमत िमधाे शरुत् समृत् िअनत्तु ॥ ११०॥ पण्यकीरु त् पण्यलभु पण्यश्ु -कीरतन् । पलोमजार्ु ितच बन-मोचनी बनधुराल् ॥ १११॥ or मोचनी बरबरालक् विमरशरूपि् विद् वियदादि-जगत््प । सरवव्य् -प्रशम सरवमृ् -त निवारिणी ॥ ११२॥ अग्रगण्याऽचिन कलिकल्-नाशिनी । कात्याय कालहन् कमलाक-निषविताे ॥ ११३॥ तामब् -परितू -मखीु दाडिमी-कुसमु -प्र । मृगाक् मोहिनी मख्ु मृडानी मित्ररूप ॥ ११४॥ नित्यतृ भक्तनिध िनियन् निखिलेश्व । मत्र्ै -वासनालभ् महाप्र-साक्षि ॥ ११५॥ परा शक्त परा निष् प्रज्ञ-रूपिण । माध्वीपानाल मत् मातृका-वर-् रूपिण ॥ ११६॥ महाकैलास-निलया मृणाल-मृद-दोरलत् । महनीया दयामर्ू ित रमहासाम्र-शालिनी ॥ ११७॥ आत्मवि महाविद् श्रीवि कामसविताे । श्-षोडशाक्ष-विद् त्रि कू कामकोटिका ॥ ११८॥ कटाक-किङ्क-भतू -कमला-कोटि-सविताे । शिरःस्थि चन्द्र भालसथ् -धनःप्रु ॥ ११९॥ lalita.pdf 11 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

हृदयस रविप्र त्रिकोणा-दीपिका । दाक्षाय दत्यहै दक्ष-विनाशिनी ॥ १२०॥ दरान्दोल-दीर्ाकघ दर-हासोज्ज-्मखीु । गरुु ूरम त् िगणनिधिरु ्गोमाता गहजन्ु भम ॥ १२१॥ दवे शीे दण्डनीतिस दहराकाश-रूपिण । प्रतिनप -राकान-तिथि-मण्ड-पजिताू ॥ १२२॥ कलात्मि कलानाथा काव्याल-विनोदिनी । or विमोदिनी सचामर-रमा-वाणी-सव-दक्ष-सविताे ॥ १२३॥ आदिशक्त िअमयाऽऽत्े परमा पावनाकृ तिः । अनककोटिे -ब्रह्-जननी दिव्यविग ॥ १२४॥ क्लींक केवला गह्ु कैवल-पददायिनी । त्रपुि त्रिजगद त्रमूि ्र त्रित शेशद ॥ १२५॥ त्र् दिव-गन्धा सिन्-तिलकाञ्चि । उमा शलै ेन्द्र गौरी गन्-ध सविताे ॥ १२६॥ विश्वगर स्र्णव र्भाऽग वागधीश्व । ध्यानगम्याऽरिप ज्ञान ज्ञानविग ॥ १२७॥ सरव् ेदाव -सवं द्े सत्या-स्वरूप । लोपामद्राु ्चर लीला-कॢ-ब्रह्-मण्डल ॥ १२८॥ अदृश् दृश्यरहि विज्ञा वद्यवे ्जर । योगिनी योगदा योग्य योगानन् यगन्धु ॥ १२९॥ इच्छाश-ज्ञानश-क्रियाश-स्वरूप । सर्ाधारव सप्रतिु सदसद् र-धारिणी ॥ १३०॥ अष्मूट ्र तअजाजत्ै लोकयात्-विधायिनी । or अजाजत्े एकाकिनी भमरूपू निर्द् दवैतव् ्जर ॥ १३१॥ अन्न वसदाु वद्ृ ब्रहम् -स्वरूप । बहतीृ ब्राह ब्रा ब्रह्म बलिप्रि ॥ १३२॥ भाषारूप बहतृ से् भावाभाव-विवर्ितज ।

12 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

सखाराध्ु शभकरीु शोभना सलभाु गतिः ॥ १३३॥ राज-राजश्वे राज-दायिनी राज-वल्ल । राजत् कृ राजपीठ-निवशिते -निजाश्रि ॥ १३४॥ राज्यलक कोशनाथा चतरङु -बलेश्व । साम्र-दायिनी सत्यस सागरमखलाे ॥ १३५॥ दीक्षि दत्यशमै सरवलो् -वशङ्क । सर्ाव ्थदार सावित् सच्चिदा-रूपिण ॥ १३६॥ दशे -कालापरिच्छि सरवग् सरवमोहिन् । सरस्व शास्त् गहाम्ु गह्यरूपु ॥ १३७॥ सर्वोपा-विनिरुकम् सदाशिव-पतिव्र । सम्प्दायर साध् गरुमण्ु -रूपिण ॥ १३८॥ कुलोत्तीर भगाराध् माया मधमतीु मही । गणाम् गह्यकाराु कोमलाङ् गरुप्रु ॥ १३९॥ स्वत सरवत् ्तन दक्षिणमूा -र रूपिण । सनकादि-समाराध् शिवज्ञ-प्रदायि ॥ १४०॥ चित्कलाऽऽ-कलिका परेमर् प्रियङ । नामपारायण-प्री नन्दिवि नटेश्व ॥ १४१॥ मिथ्-जगदधिष्ठा मक्तिु मक्तिरूपु । लास्यप् लयकरी लज् रम्भादिवन् ॥ १४२॥ भवदाव-सधावु ष्टृ पापारण्-दवानला । दौर्ागभ -तलवातू लाू जराध्व-रविप्र ॥ १४३॥ भाग्याब-चन्द् भक-चित्तके-घनाघना । रोगपरव् -दम्भोल िमृतयुद् -कुठारिका ॥ १४४॥ महश्वे महाकाली महाग्रा महाशना । अपर्ण चण्डिक चण्डुण्डम सा -निषदिनीू ॥ १४५॥ क्षराक्षरा सर-् लोकेशी विश्वधारि । त्रिर्गदव सभगाु त्र् त्रगुणात्ि ॥ १४६॥ lalita.pdf 13 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

स्व्गार वरप शद्ु जपापषु -निभाकृ तिः । ओजोवती दयुतिध् यज्ञर प्रियव ॥ १४७॥ दुराराध दुराधर् पाटली-कुसमु -प्रि । महती मरुनिलये मन्द-कुसमु -प्रि ॥ १४८॥ वीराराध् विराड्र विरजा विश्वतमुो । प्र्यत पराकाशा प्राण प्राणरूप ॥ १४९॥ मार्ाणत -भरवाराध्ै मन्त्रि-राज्धय । or मारतण् त्रपि रेु जयतसे् निसत् रैग् परापरा ॥ १५०॥ सत-ज्ञाना-रूप सामरस-परायणा । कपर्दिन कलामाला कामधकु ् कामरूपिण ॥ १५१॥ कलानिधिः काव्यक रसज् रसशवधिःे । पष्ु परातनाु पज्ू पष्कु पष्ु रेकक ॥ १५२॥ परंज्योत परंधाम परमाणःु परात्प । पाशहस् पाशहन् परमन-विभदिनीे ॥ १५३॥ मर्ू ाऽत ूरम ताऽनित्य् मनिमानसु -हंसिका । सत्यव सत्यर सर्ान्व र्यात सती ॥ १५४॥ ब्रह् ब्रह्म बहुरू बधार्ु ितच । प्रसवि प्रचण्डाऽ प्रति प्रकटा कृत ॥ १५५॥ प्रणेशा प्राणदा पञ्चाशत-रूपिण । विशृङ् विविक्त वीरमाता वियत््प ॥ १५६॥ मकु ुन् मक्तिनिलु मलविग्ू -रूपिण । भावज् भवरोगघ् भवचक-प्रव्तर ॥ १५७॥ छन्दःसा शास्त्र मन्त्र तलोदरी । उदारकीर्ित रउद्दावैभम वरणरूपि् ॥ १५८॥ जन्मम-ृ जरातप-जनविश्रा-दायिनी । सर्वोपन-दु-द घष्ु शान्त्-कलात्मि ॥ १५९॥

14 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

गम्भी गगनान्त गर्ितव गानलोलुप । कल्प-रहिता काष्ठाऽका कान्त-ा विग्र ॥ १६०॥ कारयकार् -निरुकम् कामकेलि-तरङ्गि । कनत्कनक-टङ् लीला-विग्-धारिणी ॥ १६१॥ अजा क्षयविन्मरि मग्धु क्ष-प्रसादि । अन््रत -समाराध् बहिरुम् -सदुु ्लर ॥ १६२॥ त्र त्रिर्गनिव त्रि त्रपुरमालिि । निरामया निरालम् स्वात्मा सधासृतिःु ॥ १६३॥ or सधासु रुत् ससारपङं -निरम् -समद्धु -पण्डित । यज्ञप् यज्ञक यजमान-स्वरूप ॥ १६४॥ धर्ाधारम धनाध्य धनधान-विवर्िनध । विप्रप् विप्रर विश्वभ-कारिणी ॥ १६५॥ विश्वग् विद्रुमा वष्णै विषणुरूप् । अयोनिर ्योनिनिलया कू टस् कुलरूपिण ॥ १६६॥ वीरगोष्ठीप् वीरा नष्कै र नादरूपिण । विज्ञानकल कल् विदग्ध बन्दवासै ॥ १६७॥ तत्त्वा तत्त् तत्त-् स्वरूप । सामगानप्रि सौम् सदाशिव-कुटुम्बि ॥ १६८॥ or सोम् सव्याप-मारगस् सर्ापद्विनिवारव । स्व स्वभावधुम धीरा धीरसमर्ितच ॥ १६९॥ चतन्यै -ा समाराध् चतनै -कुसमप्रिु । सदोदिता सदातष्ु तरुणादि-पाटला ॥ १७०॥ दक्षि-दक्षिणारा दरसम् -मखामु बु् । कौलिनी-केवलाऽनर-् कैवल-पददायिनी ॥ १७१॥ स्तोत्र सतुतिम् शरु् -ससं त् -वभवाै । मनस्वि मानवती महशीे मङ्गला कृत ॥ १७२॥ विश्वमा जगद्धा विशालाक् विरागिणी । lalita.pdf 15 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

प्रग परमोदारा परामोदा मनोमयी ॥ १७३॥ व्योमके विमानस् वज्रि वामकेश्व । पञ्च-प्रि पञ-पर् -मञ्चाधिशायि ॥ १७४॥ पञ्च पञ्भच तेू पञ-सख्योपचारिं । शाश्व शाश्तैशव ् शरमद् शमभुमोहि् ॥ १७५॥ धरा धरसताु धन् धर्िणम धरमवर् धि् । लोकातीता गणातीताु सर्ातीतव शमात्मि ॥ १७६॥ बनध् -कुसमप्रु बाला लीलाविनोदिनी । समङ्गु सखकरीु सवु षाढ्े सवासिनीु ॥ १७७॥ सवासिन्ु रय -प्रीताऽऽशोभ शद्धमानु । बिन-तरप् -सनतु् परू वज् त्रपुराम्ि ॥ १७८॥ दशमद्ु -समाराध् त्रपुराि -वशङ्क । ज्ञामुन ज्ञानग ज्ञाजन -स्वरूप ॥ १७९॥ योनिमद्ु त्रिख्डण त्रगुणाि त्रिकोण । अनघाऽदभ् -चारित् वाञ्छित-ा प्रदायि ॥ १८०॥ अभ्यासाति-ज्ञा षडध्वात-रूपिण । अव्य-करुण-मर्ू ित रअज्ञ-ध्व-दीपिका ॥ १८१॥ आबाल-गोप-विदिता सर्ाव ुलन -शासना । श्रीचक्-निलया श्री-मत्रपुि सुनर ॥ १८२॥ श्रीशि शिव-शकत् -रूपिण ललिताम्बि । एवं श्रीललि दव्े नाम्न साहस्र जगःु ॥ ॥ इति श्रीब्रहमाण् ् उत्तरखण श्रीहयग्रीवगस्ा त श्रीललि सहस्रन स्त कथनं समप् रू ॥्

Before we begin, let us offe ourselves at the feet of the Divine Mother, shrImat mahAtripurasundarI.

16 sanskritdocuments.org ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

This introduction deals with the background on lalitAsahasranAma (the purANa etc) and the importance of Shri Chakra, the diagrammitical form for meditation. (Only a brief description is provided here since it has been extensively described by in the text of SaundaryalaharI. A detailed description of Lalita (Shri Chakra) is given in the Hindu Tantrik page http://www.shivashakti.com/) Among the 18 , brahmANDa-purANa is well known for the extolation of Lalita. It explains in detail the appearance of the Goddess Lalita to save the world from the clutches of the demon . There are three important sub-texts in this purANa. The firs of these texts is LalitopAkhyAna, consisting of 45 chapters and is found in the last section of the purANa. The last fiv chapters are especially well known. They extol the greatness of the Divine mother, the significanc of the mantra of the goddess (shoDashAkSharI-vidyA), the various mudras and postures to be practiced, meditations, initiations etc., and the mystical placement of the deities involved in Shri Chakra. The next text is the lalitA trishati in which 300 names of the goddess is featured. There is a well known commentary on this work by Adi ShankarAchArya. The third text is the celebrated LalitA sahasranAma, which consists of 320 verses in three chapters. The firs chapter is 51 verses, and relates that the 1000 names of LalitA were recited by various devatas as commanded by the goddess herself. This chapter also explains that the verses are in anuShTup ChaNDaH(metre known as anuShTup) lalita.pdf 17 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

and that the deity Lalita is invoked in three kUTas (vAgbhava, kAmarAja, and ). The second chapter of the text contains the thousand names of the goddess in 182 1/2 verses (which is transliterated below). The third and fina chapter is 86 1/2 verses long and enumerates the benefit accrued by reciting these one thousand names of the Goddess. This is mainly to encourage people to recite the names with concentration to achieve, if not anything else, a peace of mind. Lalita trishati and lalitA sahasranAma are dialogues between the sage and the god (Pronounced as hayagrIva). Hayagriva is the incarnation of who assumed the form of a horse to kill a demon by the same name. Agastya was a sage of great renown, who is immortalized as a star in the celestial heavens(one of the seven Rishi-s, saptarShi or Ursa Major). He is the patron saint of Tamilnadu being a founder of a system of medicine called Siddha, and also having drunk the whole ocean in his kamaNDalum. According to yAska’s , Agastya is the half-brother of the great sage, VasishTha. The story of the meeting of Agastya and Hayagriva is given in the lalitopAkhyAna and is quite interesting. Agastya was visiting several places of pilgrimage and was sad to see many people steeped in ignorance and involved in only sensual pleasures. He came to kA nchi and worshipped kAmAkShI and sought a solution for the masses. Pleased with the devotion and his caring for the society, Lord ViShNu appeared before Agastya

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and provided the sage Agastya with the solution of ‘curing’ the worldly folk from ignorance. He explained that He is the primordial principle, and the source and the end of everything. Though He is above forms and guNas, He involves himself in them. He goes on to explain that a person should recognize that He is the pradhAna (primordial) transformed into the universe, and that He is also the puruSha (conscious spirit) who is transcendental and beyond all qualities(guNa-s) and forms. However to recognize this, one has to perform severe penance, self-discipline etc. If (since) this is difficul Lord ViShNu advises that the worship of the goddess will achieve the purpose of life, given as liberation from bondage, very easily. He points out that even other Gods like and have worshiped the goddess TripurA. ViShNu concludes his discourse saying that this was revealed to Agastya so that he (Agastya) can spread the message to god, sages, and humans. ViShNu requests Agastya to approach his incarnation, Hayagriva and disappears from Agastya’s sight. Agastya approaches Hayagriva with devotion and reverence. Hayagriva reveals to Agastya that the great Goddess, lalitA, is without beginning or end and is the foundation of the entire universe. The great goddess abides in everyone and can be realized only in meditation. The worship of goddess is done with the lalitA sahasranamA (1000 names) or with trishati (300 names) or with aShTottaranAma (108 names) or with Shri Chakra (diagrammatical form for meditation). In , each /deva is worshipped as a mantra, lalita.pdf 19 ॥ श्रीललितासहस्रनाम ॥स

and yantra. Shri Chakra is used to represent the divine mother diagrammatically. It denotes how the power of a small point in the centre of the Shri Chakra transforms itself into a series of triangles, circles, and lines. One can meditate on the Shri Chakra itself knowing the significanc of the triangles and circles. These forms respresent the various transformations of the Reality. One can realize that the universe has evolved through the undifferentiate consciousness and has eventually become the universe as we know it. The recitation of sahasranAma and trishati are used in the worship of Shri Chakra. The correspondence between Shri Chakra as a yantra and the fiftee letter mantra of the goddess (pa nchadashIvidyA, pronounced panchadashIvidyA) is achieved by carefully studying the Shri Chakra which is constructed using the symbolism of the three kUTa-s and the significanc of the fiftee letters of the shrIvidyA. It is said that if meditation on Shri Chakra is not possible, recitation of the sahasranAma with utmost devotion would confer the same benefits perhaps in longer time-frame. The sahasranAma also mentions how to meditate on the various centres of consciousness (chakras) in one’s body. , meaning coiled up, ordinarly resides in the chakra, at the base of spine, and when it rises to the chakra at the top of the head, one becomes aware of the ultimate reality. Before reciting the sahasranAma, it is advised that the divine mother be meditated upon according to the dhyAna shloka-s, given in the beginning of the text. May the Divine Mother guide us in our every action and thought,

20 sanskritdocuments.org and may She confer upon us the greatest gift of all, mokSha, the liberation. OM tat sat.

Encoding and notes provided by Prof. M. Giridhar [email protected] (Proofread by Kirk Wortman [email protected].)

.. Shri Lalitasahasranama stotram ..

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